Wednesday 15 July 2015

#BLIND

एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर से रात के समय विदा होने लगा तो मित्र ने अपनी लालटेन उसके हाथ में थमा दी। अंधे ने कहा,'मैं लालटेन लेकर क्या करूं? अंधेरा और रोशनी दोनों मेरे लिए बराबर हैं।'मित्र ने कहा,'रास्ता खोजने के लिए तो आपको इसकी जरूरत नहीं है, लेकिन अंधेरे में कोई दूसरा आपसे न टकरा जाये इसके लिये यह लालटेन कृपा करके आप अपने साथ रखें।'
अंधा आदमी लालटेन लेकर जो थोड़ी ही दूर गया था कि एक राही उससे टकरा गया। अंधे ने क्रोध में आकर कहा, 'देखकर चला करो। यह लालटेन नहीं दिखाई पड़ती है क्या?' राही ने कहा, 'भाई तुम्हारी बत्ती ही बुझी हुई है।'

वास्तविक गुरु दीये नहीं देता, वास्तविक गुरु केवल आंख को खोलने की विधि देता है। वास्तविक गुरु केवल आंख का उपचार देता है, औषधि देता है। दीयों का क्या भरोसा! कितनी देर चलेंगे? इसलिए वास्तविक गुरु तुम्हें नियम, मर्यादाएं नहीं देता, क्योंकि सभी नियमों की सीमाएं हैं। जो नियम आज ठीक है, वह कल गलत हो सकता है। आज की स्थिति में जो बात मर्यादा थी, कल की स्थिति में अमर्यादा हो सकती है। जो एक परिस्थिति में औषधि है, दूसरी परिस्थिति में जहर हो सकती है। इसलिए वास्तविक गुरु तुम्हें नियम नहीं देता, और न जीवन का अनुशासन देता है। वास्तविक गुरु तुम्हें केवल आंख का उपचार देता है, ताकि हर परिस्थिति में तुम देख सको। दीया बुझ जाये तो तुम जानो, दीया जलता हो तो तुम जानो। रास्ता अंधेरा हो तो दिखाई पड़े, रास्ता प्रकाश से भरा हो तो दिखाई पड़े। कोई टकराए तो तुम पहचानो; तुम किसी से टकराओ तो तुम पहले से जान सको।